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दिनकर की रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना के स्वर
डॉ. मुकेश कुमार,असिस्टेंट प्रोफेसर
हिंदी विभाग,जी . जे . कॉलेज ,रामबाग बिहटा,पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय पटना, इंडिया , मो. न. -9572434274 ,ईमेल आइडी: mukeshkumarppu@gmail.com
शोध-आलेख सार :
उत्तर-छायावादी कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ राष्ट्रीय चेतना के प्रतिनिधि कवि हैं । उनकी राष्ट्रीयता पुनरुत्थानवादी दृष्टिकोण का विकास ही नहीं अपितु विडंबनाओं ,विसंगतियों और अंतर्विरोधों के परिणामस्वरूप सामाजिक राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में व्याप्त गरीबी ,अशिक्षा,बेरोजगारी,भ्रष्टाचार और अस्पृश्यता से लोहा लेते हुए ब्रिटिश साम्राज्यवाद को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहती है । नर-नारी,युद्ध-प्रेम ,प्रेम-सन्यास ,संवेदना-विचार ,कर्त्तव्य-अधिकार ,पूंजीवाद-समाजवाद ,ऊँच-नीच ,अमीर-गरीब के बीच समन्वय स्थापित करती उनकी राष्ट्रीय चेतना देश की विविधता और सामासिक संस्कृति का उत्सव मानते हुए देशवासियों को एकता के एक सूत्र में जोड़ने का काम करती है । दिनकर की राष्ट्रीय चेतना में भोगवाद , भाग्यवाद ,अकर्मण्यता ,असमानता ,साम्प्रदायिकता और ब्रह्मणवाद का विरोध दिखता है । दिनकर की राष्ट्रीयता में जितना कर्म के चिंतन पर बल है उतना ही व्यक्ति के स्वाभिमान पर । सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक पाखंड के खिलाफ दिनकर का काव्य मानवता का प्रतीक बनकर सामने आया है । हर प्रकार की अनीति , जड़ता ,अमानवीयता और अन्याय के खिलाफ उनकी कविता विद्रोह करती रही है । देश में चल रहे राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम ने दिनकर की चेतना को गढ़ा है । दिनकर के काव्य में ओज और पौरुष का स्वर अकारण नहीं है । उसके मूल में देश की सामाजिक ,राजनीतिक ,आर्थिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों का समावेश है । जीवन के यथार्थ ने उनके अनुभूति को सक्रिय ढंग से विकसित किया है । दिनकर के काव्यों में जातीय चेतना का जो रूप उभरा है वह उनकी कविताओं को संदर्भवान तथा प्राणवान बनाता है । वे मानते हैं कि संपूर्ण अन्याय की जड़ पूंजी का ही खेल है जिसने समाज को कई स्तरों पर बाँट दिया है । दिनकर समय के कोलाहल को सुनने वाले अत्यंत समर्थ कवि हैं । उनके काव्यों में अतीत के गौरव गान के साथ-साथ एक ओर जहाँ रणचंडी का प्रकोप तथा रसवंती का प्यार छलकता है वहीं दूसरी ओर विद्रोह की प्रज्वलित अग्नि के साथ उखाड़-पछाड़ और गर्जन-तर्जन की ध्वनि भी सुनाई देती है । दिनकर प्रेम और शृंगार के भी कुशल चितेरे हैं । इस रूप में ‘उर्वशी’ उनकी महत्वपूर्ण रचना है । उनकी काव्यकृति रसवंती में यौवन और सौन्दर्य के मनमोहक चित्र प्रस्तुत हुए हैं जो दिनकर के रोमांटिक छवि को उजागर करता है । दिनकर जी जनचेतना , राष्ट्रीयता और प्रेम के संस्थापक कवि हैं तथा उनका समूचा कृतित्व हमारे जातीय साहित्य की अमूल्य धरोहर है । कुरुक्षेत्र ,उर्वशी ,रश्मिरथी के साथ-साथ रेणुका ,हुंकार ,रसवंती ,द्वन्द्वगीत सामधेनी,बापू ,आग और धुआँ परशुराम की प्रतीक्षा इत्यादि उनकी कालजयी पद रचनाएं हैं । मिट्टी की ओर अर्धनारीश्वर ,रेती के फूल,शुद्ध कविता की खोज,संस्कृति के चार अध्याय उनकी महत्वपूर्ण गद्य रचनाएं हैं ।
"Dinkar Ki Rachnaon Men Rashtriya Chetna Ke Swar (दिनकर की रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना के स्वर )", International Journal of Science & Engineering Development Research (www.ijrti.org), ISSN:2455-2631, Vol.7, Issue 5, page no.588 - 597, June-2022, Available :http://www.ijrti.org/papers/IJRTI2205100.pdf
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000205316
ISSN:
2456-3315 | IMPACT FACTOR: 8.14 Calculated By Google Scholar| ESTD YEAR: 2016
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