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प्रस्तुत शोध-आलेख का ध्येय आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर अज्ञेय के काव्य के भाव एवं शिल्प पक्ष को प्रस्तुत एवं विवेचित करना है। अज्ञेय की काव्य-चेतना में प्रेम का विशिष्ट महत्त्व है। काव्य यात्रा के प्रथम चरण में अज्ञेय का प्रमुख काव्य विषय प्रेम ही है। द्वितीय चरण मे प्रेम, प्रकृति और समाज को लगभग समान महत्त्व दिया गया है। तृतीय चरण में प्रकृति और रहस्यानुभव की प्रमुखता दृष्टिगत होती है। काव्य यात्रा के तीनों ही चरणों में अज्ञेय की प्रेम-भावना किसी न किसी रूप में विकसित होती रही है। इस विकास की दृष्टि से ऐसा प्रतीत होता है कि प्रारंभ में कवि की प्रेम-भावना आदर्श के ऊँचे पर्वत शिखर से अपना उत्स ढूंढ़ती हुई प्रवाहित होती है, मध्य में यौन चेतना से युक्त होकर व्यापक रूप धारण कर लेती है। अंत में गंभीर होकर अध्यात्म के समुद्र में प्रवेश पाने लगती है। अज्ञेय की प्रारंभिक प्रेम विषयक कविताओं पर पूर्ववर्ती कवियों का प्रभाव भी परिलक्षित होता है। ‘भग्नदूत’ से ‘इत्यलम्’ तक की रचनाओं में कवि की प्रेम-भावना ने यत्र-तत्र भावुकता व आदर्श का दामन पकड़ रखा है। ‘चिंता’ में नर-नारी के प्रेम संबंध का मात्र आदर्श रूप ही नहीं आधुनिक रूप भी मिलता है। इस काव्य में अज्ञेय ने नर-नारी के संबंध को गतिशील संबंध मानते हुए सखी-सखा संबंध की बात उठाई है। “मैं तुम क्या बस सखी-सखा” - मात्र एक कथन नहीं है अपितु यह अज्ञेय की प्रेम संबंधी उस मान्यता की ओर संकेत करता है जिसका स्पष्टीकरण उन्होंने ‘चिंता’ की भूमिका में दिया है।
यायावर अज्ञेय के काव्य का भावनात्मक पक्ष काव्य में चीनी और पानी के मेल के समान मानों घुल-सा गया है। भाव शिल्प के आभूषणों सहित प्रयोग की पटरी पर सरपट दौड़ लगाते प्रतीत होते हैं। शोध-आलेख का उद्देश्य भी अज्ञेय की काव्य-कला का निदर्शन ही है।
Keywords:
यायावर, प्रयोगवाद, कवि, छायावाद, नई कविता
Cite Article:
"अज्ञेय की काव्य रचना का भारतीय समाज पर प्रभाव : एक अध्ययन", International Journal of Science & Engineering Development Research (www.ijrti.org), ISSN:2455-2631, Vol.7, Issue 10, page no.980 - 981, October-2022, Available :http://www.ijrti.org/papers/IJRTI2210119.pdf
Downloads:
000202523
ISSN:
2456-3315 | IMPACT FACTOR: 8.14 Calculated By Google Scholar| ESTD YEAR: 2016
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