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गांधीवादी दर्शन सादगीपूर्ण जीवन शैली, स्वदेशी की भावना, विकेन्द्रीकरण, मानव श्रम प्रधान ग्राम अर्थव्यवस्था, बुनियादी रोजगारपरक शिक्षा, आत्मनिर्भर राष्ट्र, प्रन्यास भावना जैसे सिद्धान्तों पर आधारित है। इस गांधीवादी प्रतिमान को यदि वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में अपना लिया जाए तो एक सुखद एवं न्यायपूर्ण विश्व अर्थव्यवस्था का निर्माण किया जा सकता है। क्योंकि भौतिक समस्याओं के नैतिक निदान पर आधारित यह दर्शन विश्व को एक नवीन दृष्टि प्रदान करता है। समकालीन वैश्वीकरण के दौर में गांधीवादी दर्शन का महत्व और अधिक बढ़ गया है। वैश्वीकरण के नाम पर शुरू हुए आर्थिक सुधारों से गरीबी, मूल्यवृद्धि, बेरोजगारी, आर्थिक विषमता, अपराध, उपभोक्ता संस्कृति, नगरीकरण, केन्द्रीकरण आदि प्रवृत्तियों में वृद्धि हुयी है। इन विभिन्न समस्याओं का हल गांधीवादी प्रतिमान के अन्तर्गत मिलता है। सत्य व अहिंसा पर आधारित गांधीवादी प्रतिमान सभी समस्याओं के लिए नैतिक युक्ति प्रस्तुत करता है।
समकालीन वैश्वीकरण के दौर में गांधीवादी दर्शन का महत्व और अधिक बढ़ गया है। महात्मा गांधी इस तथ्य पर बहुत अधिक बल देते थे कि आर्थिक पक्ष और नैतिक पक्ष एक-दूसरे के पूरक है। अर्थव्यवस्था को नैतिकता से पृथक् नहीं किया जा सकता अपितु आर्थिक विकास भी नैतिकता पर ही आधारित होना चाहिए। वैश्वीकरण के नाम पर शुरू हुए आर्थिक सुधारों से गरीबी, मूल्यवृद्धि, बेरोजगारी, विषमता, अपराध, उपभोक्ता संस्कृति आदि में वृद्धि हुयी है। मात्र लाभ कमाने के लिए बाजार अर्थव्यवस्था में उत्पादन किया जा रहा है और प्रौद्योगिकी के माध्यम से प्रकृति से अन्याय हो रहा है। गांधीजी ने प्रकृति एवं मनुष्य के नैसर्गिक सम्बन्धों, स्थायी विकास एवं समुचित तकनीक पर जोर दिया। गांधीवादी दर्शन सादगीपूर्ण जीवन शैली स्वदेशी की भावना और विकेन्द्रीकरण पर बल देता है।
समकालीन विश्व में केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। आज विश्व के आर्थिक संसाधनों पर कुछ चुनिंदा विकसित देशों का ही नियंत्रण है। पश्चिम के ये पंूजीवादी विकसित देश गरीब विकासशील देशों का बड़े पैमाने पर शोषण कर रहे है। विकासशील देशों ने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की मांग उठायी है जो वस्तुतः वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकेन्द्रीकरण की मांग ही है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के द्वारा विश्व के उत्पादन, पंूजी व तकनीक पर नियंत्रण कर लिया है। जिससे वैश्विक स्तर पर केन्द्रीकरण व आर्थिक असमानता निरन्तर बढ़ती जा रही है। गांधीजी केन्द्रीकरण को भी हिंसा का ही प्रतीक मानते हैं। उनके अनुसार शोषण व असमानता का प्रमुख कारण ही आर्थिक क्षेत्र में केन्द्रीकरण है। इसके विकल्प के रूप में उन्होंने अहिंसक अर्थव्यवस्था के विचार को प्रस्तुत किया है। इसी अहिंसक अर्थव्यवस्था को वे विकेन्द्रीत अर्थव्यवस्था का नाम देते हैं। इसकी संरचना विकेन्द्रीत होगी अर्थात् इसमें उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी कार्य को स्थानीय स्तर पर किया जाएगा। इस ग्रामीण अर्थव्यवस्था के संचालन में विभिन्न कुटीर एवं ग्राम उद्योगों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। इसके उत्पादन एवं वितरण का आधार जन सहयोग होगा। यहाँ मूलतः मानव श्रम की प्रधानता होगी, अतः सभी को रोजगार प्राप्त होगा। यह समकालीन विश्व में समावेशी विकास के लक्ष्य को पूरा करने में सहायक हो पाएगी क्योंकि इस अर्थव्यवस्था का आधार ही विकेन्द्रीकरण है।
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Cite Article:
"वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था एवं गांधीवादी दर्शन ", International Journal of Science & Engineering Development Research (www.ijrti.org), ISSN:2455-2631, Vol.8, Issue 7, page no.1073 - 1075, August-2023, Available :http://www.ijrti.org/papers/IJRTI2307149.pdf
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ISSN:
2456-3315 | IMPACT FACTOR: 8.14 Calculated By Google Scholar| ESTD YEAR: 2016
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