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समान नागरिक संहिता (यूसीसी) उन कानूनों के एक सामान्य समूह को संदर्भित करती है जो सभी नागरिकों पर लागू होते हैं और विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने सहित अन्य व्यक्तिगत मामलों से निपटने में धर्म पर आधारित नहीं होते हैं। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) भारत के लिए एक क़ानून बनाने का आह्वान करती है, जो विवाह, तलक, विरासत, गोद लेने जैसे मामलों में सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होगा।यह देश के शासन के लिए मौलिक है। एक आदर्श राज्य के लिए यूसीसी नागरिकों के अधिकारों की एक आदर्श सुरक्षा होगी। इसे अपनाना एक प्रगतिशील कानून होगा। बदलते समय के साथ, सभी नागरिकों के लिए, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, एक समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पैदा हो गई है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकार सुरक्षित हैं। यहां तक कि यूसीसी लागू करके धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय अखंडता को भी मजबूत किया जा सकता है।
संविधान निर्माताओं ने कल्पना की थी कि कानूनों का एक समान सेट होगा जो विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने के संबंध में हर धर्म के आदिम व्यक्तिगत कानूनों की जगह लेगा। यूसीसी राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों का हिस्सा है जो कानून की अदालत में लागू करने योग्य या न्यायसंगत नहीं है। समान नागरिक संहिता (न्ब्ब्) या यूनिफॉर्म सिविल कोड (न्दपवितउ बपअपस बवकम) में देश में सभी धर्मों, समुदायों के लिए एक सामान, एक बराबर कानून बनाने की वकालत की गई है। इस कानून का मतलब है कि देश में सभी धर्मों, समुदायों के लिए कानून एक समान होगा। यह संहिता संविधान के भाग-प्ट के अनुच्छेद-44 के तहत आती है। इसमें कहा गया है कि राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे।
Keywords:
धार्मिक समुदाय, धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रीय अखंडता, धार्मिक समुदाय समान आचार संहिता, संविधान, नागरिक संहिता, अनुच्छेद-44
Cite Article:
"भारत में समान नागरिक संहिता के प्रावधान एक राजनीतिक अध्ययन", International Journal of Science & Engineering Development Research (www.ijrti.org), ISSN:2455-2631, Vol.9, Issue 6, page no.515 - 519, June-2024, Available :http://www.ijrti.org/papers/IJRTI2406074.pdf
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000205035
ISSN:
2456-3315 | IMPACT FACTOR: 8.14 Calculated By Google Scholar| ESTD YEAR: 2016
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