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राजस्थान प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा मरुस्थल से आच्छादित है। बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर, नागौर और शेखावाटी का कुछ भाग टीलों और धोरो की संस्कृति का प्रतीक है। इस प्रदेश में जनजीवन जितना कठिन है, यहाँ की सांस्कृतिक परंपरा उतनी ही आकर्षक और समृद्ध है। मेवाड़ की धरती ने भी अद्वितीय शैली की परंपरा का पोषण किया है, जिसका प्रारंभिक रूप मंडोर के क्षेत्र से माना जा सकता है। पश्चिमी राजस्थान में राम और रहीम, गज और गध, पीर और मीर, और अय्याल और वडेर जैसे देवताओं की पूजा बिना किसी भेदभाव के की जाती है। राजस्थान में धर्म की नई प्रवृत्ति का प्रारंभ लोक देवताओं की पूजा में दिखाई देता है। लोक देवताओं की आराधना ने नई प्रवृत्ति का रूप धारण किया है। महान संतों ने त्याग और आत्म-साक्षात्कार द्वारा अपने राष्ट्र की सेवा की। उनके नैतिक जीवन और लोकसंग्रह की प्रवृत्ति ने समाज में उन्हें देवता का स्थान दिलाया। इन स्थानों में एक आध्यात्मिक आवाज थी जिसमें शांति और भाइचारे का मार्ग प्रमुख था। लोक देवताओं के अलावा साहित्य ने भी राजस्थान के साहित्यिक और जनजीवन की कहानी प्रस्तुत की है, जिसमें चारण साहित्य प्रमुख है। इसमें वीर और श्रृंगार रस की प्रमुखता रही है, और इसका प्रभाव युद्धों और राजनीति के अखाड़ों पर आधारित है। इसमें नारी जीवन, त्याग, और साक्षात्कार को बड़े भावुकता से वर्णित किया गया है। युद्ध के दौरान कई वीरों की कहानियाँ इस प्रकार समाहित हैं कि वे वीर रस प्रमुख होते हुए भी अन्य रसों को प्रकट करने में पीछे नहीं हटते। राजस्थानी चित्रकला का विकास और विस्तार केवल एक या दो केंद्रों में नहीं बल्कि अनेक नगरों, राजधानियों, मंदिरों और स्थानों के भित्तिचित्रों में हुआ। धार्मिक प्रवृत्तियों के अलावा नगरों में कवियों, चित्रकारों, संगीतकारों, नर्तकियों आदि के सहयोग से राजस्थानी चित्रकला अनेक शैलियों और उपशैलियों में विकसित हो सकी। चित्रकला का यह समृद्ध विरासत राजस्थान के हर कोने में देखी जा सकती है, जहां कला और संस्कृति के विभिन्न रूपों का संगम होता है। राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि यहाँ की परंपराएँ और लोकजीवन एक गहरे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आधार पर स्थापित हैं। यह प्रदेश अपने समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास और विविध परंपराओं के लिए जाना जाता है, जो यहाँ के जीवन को एक अनोखी पहचान देते हैं।
"राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर मारवाडी चित्रकलाः वीर रस के संदर्भ में", International Journal of Science & Engineering Development Research (www.ijrti.org), ISSN:2455-2631, Vol.9, Issue 6, page no.604 - 609, June-2024, Available :http://www.ijrti.org/papers/IJRTI2406088.pdf
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ISSN:
2456-3315 | IMPACT FACTOR: 8.14 Calculated By Google Scholar| ESTD YEAR: 2016
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