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मुंशी प्रेमचंद, जिनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, भारतीय साहित्य के सबसे प्रभावशाली लेखकों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में अद्भुत साहित्य रचना की, जिससे उन्हें "किस्सा कहानियों का बादशाह" भी कहा जाता है। प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी में हुआ, और उनका जीवन भारतीय समाज की जटिलताओं और संघर्षों के बीच बीता। उनकी रचनाएँ भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं का गहरा चित्रण करती हैं, जिसमें न केवल सामाजिक और आर्थिक स्थितियाँ, बल्कि राजनीतिक बदलावों का भी विश्लेषण किया गया है।
प्रेमचंद की कहानियाँ और उपन्यास केवल कथा कहानियों तक सीमित नहीं हैं; वे भारतीय समाज की गहराई से आलोचना करते हैं और उसे पुनः रचना करते हैं। उनके पात्र आम जनजीवन से जुड़े हुए हैं, जो समाज के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रेमचंद का लेखन न केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि यह सामाजिक चेतना का भी परिचायक है। उन्होंने अपने समय की विसंगतियों को अपनी कहानियों में समाहित किया और पाठकों को सामाजिक परिवर्तन की दिशा में प्रेरित किया।
उनकी रचनाओं में गाँव की सरलता, किसानों की मेहनत, और स्त्रियों की पीड़ा को महसूस किया जा सकता है। प्रेमचंद ने भारतीय किसान, मजदूर, और असहाय व्यक्तियों के जीवन के संघर्षों को बड़े संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया है। उनकी रचनाएँ न केवल यथार्थवादी दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि किस प्रकार परंपराएँ और सामाजिक संरचनाएँ व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करती हैं।
प्रेमचंद के लेखन में भारतीय समाज की जटिलताएँ, परंपराएँ और इतिहास एक दूसरे के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं। वे अपने पात्रों के माध्यम से समाज की विविधता को प्रस्तुत करते हैं और यह दर्शाते हैं कि कैसे लोग अपनी परिस्थितियों का सामना करते हैं। प्रेमचंद की रचनाओं में विचारशीलता और संवेदनशीलता का अद्भुत मेल है, जिससे पाठकों को न केवल मनोरंजन मिलता है, बल्कि उन्हें सोचने और महसूस करने की प्रेरणा भी मिलती है।
इस शोध पत्र में हम प्रेमचंद की रचनाओं में भारतीय समाज के चित्रण, उनके ऐतिहासिक संदर्भ, और परंपराओं के प्रभाव का गहन विश्लेषण करेंगे। हम यह देखेंगे कि कैसे प्रेमचंद ने समाज की समस्याओं को अपनी कहानियों के माध्यम से उजागर किया और किस प्रकार उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं। यह अध्ययन हमें यह समझने में मदद करेगा कि प्रेमचंद का साहित्य केवल उनके समय का ही नहीं, बल्कि आज के समाज का भी दर्पण है, जिसमें सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक मुद्दों का सार्थक विमर्श है।
प्रेमचंद का जीवन और साहित्यिक पृष्ठभूमि
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी में हुआ था, और उनका जीवन कई सामाजिक और आर्थिक संघर्षों से भरा रहा। उनके पिता एक साधारण शिक्षक थे, और परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। इस कठिनाई ने प्रेमचंद को जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और उनकी जड़ों में जाकर उनकी वास्तविकता को जानने का अवसर प्रदान किया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में प्राप्त की और बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की।
प्रेमचंद का जीवन कई कठिनाइयों का सामना करते हुए बीता। उनकी माता का निधन जब वह बहुत छोटे थे, तब हुआ, जिससे उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसके बाद, उनके परिवार की आर्थिक तंगी ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया, जिससे उन्होंने समाज के वंचित और संघर्षरत वर्गों के प्रति गहरी सहानुभूति विकसित की। उनके जीवन की ये कठिनाइयाँ उनके लेखन में गहराई और संवेदनशीलता लाती हैं।
प्रेमचंद का लेखन 20वीं सदी के प्रारंभ में हुआ, जब भारत ब्रिटिश उपनिवेश के अधीन था। इस समय भारतीय समाज में कई सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन हो रहे थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सामाजिक सुधार आंदोलनों, और ब्रिटिश शासन की नीतियों ने समाज के विभिन्न वर्गों पर गहरा प्रभाव डाला। प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में इन परिवर्तनों का सूक्ष्मता से चित्रण किया है। उनकी कहानियों और उपन्यासों में ग्रामीण भारत की वास्तविकता, किसानों की कठिनाइयाँ, और निम्न वर्ग की समस्याएँ प्रमुखता से उभरती हैं।
प्रेमचंद ने पहले उर्दू में लिखना शुरू किया और बाद में हिंदी में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं। उनके पहले उपन्यास "आ Bancजन" और "प्रेमाश्रम" ने उन्हें एक लेखक के रूप में पहचान दिलाई। प्रेमचंद का लेखन केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं था; उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से सामाजिक बदलाव का आह्वान किया। उनकी रचनाएँ न केवल कहानी कहती हैं, बल्कि सामाजिक मुद्दों पर गंभीर प्रश्न उठाती हैं।
उन्होंने अपने समय की वास्तविकताओं को उजागर किया और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास किया। उनके पात्र आम जीवन से जुड़े होते हैं, जो संघर्ष, प्रेम, और अन्याय का सामना करते हैं। प्रेमचंद ने अपने लेखन के माध्यम से भारतीय साहित्य में एक नई दिशा स्थापित की, जिसमें न केवल सामाजिक यथार्थ को दर्शाया गया, बल्कि पाठकों को सामाजिक सुधार की प्रेरणा भी दी गई।
प्रेमचंद की रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं, और उनका प्रभाव आधुनिक लेखकों पर भी देखने को मिलता है। उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के बीच संवाद स्थापित करने का कार्य किया और साहित्य को एक ऐसा माध्यम बनाया, जो सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देता है। उनके जीवन और लेखन ने यह सिद्ध किया कि साहित्य केवल कल्पना का खेल नहीं है, बल्कि यह समाज के चित्रण और उसके सुधार का एक सशक्त उपकरण है।
भारतीय समाज का सामाजिक चित्रण
प्रेमचंद की रचनाओं में भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों का चित्रण अत्यंत प्रासंगिक और संवेदनशील तरीके से किया गया है। उन्होंने समाज के उन पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया, जो आमतौर पर अनदेखे रहते हैं। विशेष रूप से, उन्होंने गरीब किसानों और श्रमिकों की दुर्दशा को उजागर किया, जो भारतीय समाज की वास्तविकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनके उपन्यास "गोदान" में होरी महतो की कहानी के माध्यम से प्रेमचंद ने भारतीय कृषक वर्ग की कठिनाइयों और सामाजिक असमानताओं को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है।
होरी महतो की कहानी न केवल उसकी व्यक्तिगत यात्रा है, बल्कि यह भारतीय ग्रामीण समाज की स्थिति का भी प्रतीक है। होरी एक साधारण किसान है, जो अपने जीवन में अनेक संघर्षों का सामना करता है। उसकी स्थिति यह दर्शाती है कि कैसे भारतीय किसान आर्थिक तंगी, कर्ज, और सामाजिक भेदभाव का शिकार होते हैं। होरी की मेहनत और उसके परिवार की कठिनाइयों में प्रेमचंद ने किसान जीवन के यथार्थ को बहुत ही स्पष्टता से चित्रित किया है। होरी का सपना एक गाय खरीदने का होता है, जो उसके लिए न केवल आर्थिक सुरक्षा का प्रतीक है, बल्कि उसके सम्मान का भी। हालाँकि, उसके जीवन में आने वाली विपत्तियाँ उसे इस सपने से दूर ले जाती हैं, और अंततः उसका जीवन एक त्रासदी में समाप्त होता है। इस प्रकार, प्रेमचंद ने यह संदेश दिया है कि सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ केवल व्यक्तिगत नहीं होती, बल्कि वे सामूहिक रूप से एक समुदाय की पहचान को प्रभावित करती हैं।
प्रेमचंद ने स्त्री की स्थिति को भी अपने लेखन में महत्वपूर्ण रूप से प्रस्तुत किया। उन्होंने महिलाओं की सामाजिक स्थिति, उनके अधिकारों, और परंपराओं के खिलाफ उनके संघर्ष को एक सशक्त आवाज दी। उनकी कहानियाँ जैसे "सद्गति" और "बूढ़ी काकी" इस बात का प्रमाण हैं कि प्रेमचंद ने महिलाओं की समस्याओं को लेकर गहरी संवेदना व्यक्त की है।
"सद्गति" में प्रेमचंद ने एक गरीब और अनपढ़ महिला की कहानी को प्रस्तुत किया है, जो अपने पति की बीमारी और समाज के दमन के बीच संघर्ष करती है। इस कहानी में न केवल महिला की पीड़ा को दर्शाया गया है, बल्कि यह भी दिखाया गया है कि कैसे समाज की संरचना और पुरुष वर्चस्व उसे सीमित करता है।
"बूढ़ी काकी" में एक वृद्ध महिला की दुर्दशा को दर्शाया गया है, जो परिवार के प्रति अपने समर्पण के बावजूद अकेली और असहाय हो जाती है। यह कहानी समाज में बुजुर्गों के प्रति असंवेदनशीलता और महिलाओं के लिए अपमानजनक स्थिति को उजागर करती है।
प्रेमचंद की रचनाएँ केवल पात्रों की कहानियों तक सीमित नहीं हैं; वे समाज के विभिन्न पहलुओं का आलोचनात्मक विश्लेषण भी करती हैं। उनके लेखन में प्रकट समस्याएँ आज भी प्रासंगिक हैं, और वे न केवल पाठकों को सोचने के लिए प्रेरित करती हैं, बल्कि उन्हें सामाजिक परिवर्तन की दिशा में भी मार्गदर्शन करती हैं।
अतः प्रेमचंद ने अपने साहित्य के माध्यम से भारतीय समाज के जटिलताओं को उजागर किया है, जहाँ उन्होंने गरीबों, किसानों, और महिलाओं की आवाज को मजबूती से प्रस्तुत किया है। उनकी रचनाएँ आज भी हमारे समाज के लिए एक दर्पण की तरह हैं, जो हमें अपनी पहचान, मूल्यों, और सामाजिक संरचनाओं पर विचार करने के लिए मजबूर करती हैं।
इतिहास और परंपरा
प्रेमचंद की रचनाएँ भारतीय इतिहास और परंपरा से गहराई से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने भारतीय संस्कृति, मूल्यों, और परंपराओं का सम्मान किया, लेकिन साथ ही साथ उन पर प्रश्न भी उठाए। उनके लेखन में एक प्रकार की सामाजिक और राजनीतिक चेतना का संचार होता है, जिससे पाठक समाज के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए प्रेरित होते हैं।
उनका उपन्यास "कर्मभूमि" भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि में लिखा गया है। इस रचना में प्रेमचंद ने स्वराज की आवश्यकता को दर्शाया और स्वतंत्रता संग्राम के महत्व को समझाया। "कर्मभूमि" में न केवल राजनीतिक जागरूकता है, बल्कि यह समाज के सुधार की भी मांग करती है। इसमें प्रेमचंद ने यह स्पष्ट किया है कि स्वराज केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि यह समाज के सभी वर्गों के अधिकारों और उनके उत्थान की भी बात करती है। उपन्यास के पात्र जैसे कि नरेश और दामोदर अपने विचारों और कार्यों के माध्यम से यह दिखाते हैं कि कैसे समाज के विभिन्न तबकों को एकजुट होकर बदलाव लाना होगा। प्रेमचंद का यह दृष्टिकोण दर्शाता है कि स्वतंत्रता केवल एक बाहरी स्थिति नहीं है, बल्कि यह आंतरिक जागरूकता और सामाजिक न्याय की आवश्यकता है।
प्रेमचंद ने अपने लेखन में भारतीय त्योहारों, परंपराओं, और रीति-रिवाजों का भी चित्रण किया है। उनके पात्र अक्सर पारंपरिक मान्यताओं के बीच संघर्ष करते हैं, जो दर्शाता है कि कैसे समाज में बदलाव आ रहा है और कैसे पुरानी परंपराएँ नए विचारों से टकराती हैं। प्रेमचंद ने भारतीय संस्कृति के सकारात्मक पहलुओं के साथ-साथ उसके दोषों को भी उजागर किया है।
उदाहरण के लिए, उनकी कहानी "गुल्ली डंडा" में बच्चों के खेल के माध्यम से समाज के परिवर्तनों को दिखाया गया है। यहाँ बच्चों की खेल-खिलौनों में भी परंपराओं और सामाजिक संरचनाओं की छाप देखी जा सकती है। इसी प्रकार, "बूढ़ी काकी" में परिवार की परंपराओं के प्रति दया और सम्मान की आवश्यकता को प्रस्तुत किया गया है, जबकि बुजुर्गों के प्रति असंवेदनशीलता को भी उजागर किया गया है।
प्रेमचंद की रचनाओं में भारतीय परंपराओं की जटिलताएँ दिखाई देती हैं, जहाँ वे सदियों पुरानी परंपराओं और आधुनिक विचारों के बीच की टकराहट को चित्रित करते हैं। उन्होंने दिखाया है कि कैसे समाज के मूल्य और नैतिकताएँ बदल रही हैं, और किस प्रकार ये परिवर्तन नई पीढ़ी के लिए चुनौती प्रस्तुत कर रहे हैं।
उनका साहित्य इस बात का प्रतीक है कि कैसे एक लेखक न केवल अपने समय की समस्याओं को देख सकता है, बल्कि उन्हें सुधारने की दिशा में भी प्रेरित कर सकता है। प्रेमचंद की दृष्टि ने यह सिद्ध किया है कि इतिहास और परंपरा केवल अतीत का वर्णन नहीं हैं, बल्कि वे वर्तमान और भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। उनके लेखन में यह स्पष्ट है कि भारतीय समाज को अपने इतिहास और परंपराओं को समझते हुए, उन्हें नए दृष्टिकोणों और विचारों से संतुलित करना होगा।
अतः, प्रेमचंद की रचनाएँ इतिहास और परंपरा के बीच एक पुल का कार्य करती हैं, जो पाठकों को यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि वे अपनी सांस्कृतिक विरासत को किस प्रकार से आगे बढ़ा सकते हैं और किस तरह से एक बेहतर समाज की रचना कर सकते हैं। उनके साहित्य ने भारतीय समाज को अपने भीतर के मुद्दों को समझने और उन्हें सुधारने की दिशा में एक नई सोच दी है।
प्रेमचंद का प्रभाव
प्रेमचंद का साहित्य न केवल उनकी समय की सामाजिक समस्याओं को दर्शाता है, बल्कि यह आज भी प्रासंगिक और महत्वपूर्ण है। उनकी रचनाएँ न केवल भारतीय समाज के लिए एक दर्पण हैं, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती हैं कि समाज में बदलाव के लिए किस प्रकार के प्रयास किए जाने चाहिए। प्रेमचंद के लेखन में निहित गहरी सामाजिक संवेदनाएँ, मानवता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और एक सशक्त समाज के निर्माण की आवश्यकता की भावना आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं।
प्रेमचंद के पात्रों की जटिलताएँ और उनके संघर्ष हमें मानवता के विविध पहलुओं की ओर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करते हैं। जैसे कि उनके उपन्यास "गोदान" में होरी महतो का संघर्ष केवल एक किसान का नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा प्रतीक है जो हमारे समाज में मौजूद गरीबी, सामाजिक असमानता और आर्थिक तंगी की गहनता को दर्शाता है। प्रेमचंद ने अपने पात्रों के माध्यम से यह बताया कि किस तरह से आर्थिक और सामाजिक धारणाएँ व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करती हैं।
प्रेमचंद की कहानियाँ, जैसे "कफन" और "सद्गति," न केवल पाठकों को सोचने पर मजबूर करती हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी समस्याओं को सुलझाने के लिए समर्पण और सहानुभूति की आवश्यकता है। उनके लेखन ने यह स्पष्ट किया है कि समाज की विकृतियों को पहचानना और उनका समाधान निकालना हर एक व्यक्ति की जिम्मेदारी है।
प्रेमचंद ने अपने समय में जिस सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता की आवश्यकता की थी, वह आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके विचार आज के संदर्भ में भी लागू होते हैं, जहाँ हम विभिन्न सामाजिक मुद्दों जैसे कि जातिवाद, लिंग भेदभाव, और आर्थिक असमानता से जूझ रहे हैं। उनका साहित्य हमें यह याद दिलाता है कि केवल आलोचना करना ही पर्याप्त नहीं है; परिवर्तन लाने के लिए सक्रियता और सहयोग की आवश्यकता है।
आधुनिक युग में, प्रेमचंद की रचनाएँ न केवल साहित्यिक अध्ययन का विषय हैं, बल्कि वे सामाजिक विज्ञान, मनोविज्ञान, और मानविकी के छात्रों के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदर्भ बन गई हैं। उनके कार्यों ने साहित्यिक रूप से एक नई धारा का निर्माण किया, जहाँ सामाजिक वास्तविकताओं और मानवीय भावनाओं का उत्कृष्ट समन्वय किया गया है।
उनकी कहानियाँ और उपन्यास अब भी सिनेमा, थिएटर, और टेलीविजन में रूपांतरित होते हैं, जो दर्शाते हैं कि उनका प्रभाव समय के साथ कम नहीं हुआ है। उनके साहित्य ने न केवल साहित्यिक जगत में बल्कि समाज में भी गहरी छाप छोड़ी है।
प्रेमचंद का योगदान केवल उनके लेखन तक सीमित नहीं है; उन्होंने एक ऐसी सोच का विकास किया जो समाज को जागरूक करने, संवेदनशीलता बढ़ाने, और सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता को उजागर करने का कार्य करती है। उनके साहित्य ने भारतीय साहित्य के क्षेत्र में सामाजिक मुद्दों को उठाने के लिए एक मजबूत मंच प्रदान किया है, और आज भी उनके विचारों और दृष्टिकोणों से नई पीढ़ियाँ प्रेरित हो रही हैं।
अतः, प्रेमचंद का प्रभाव न केवल उनके समय में बल्कि वर्तमान समय में भी स्पष्ट है। उनके लेखन ने हमें यह सिखाया है कि सामाजिक परिवर्तन संभव है, यदि हम एकजुट होकर अपनी जिम्मेदारियों को समझें और अपने समाज के उत्थान के लिए प्रयास करें। उनका साहित्य न केवल एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, बल्कि यह एक मार्गदर्शक है जो हमें बेहतर भविष्य की दिशा में अग्रसरित करता है।
निष्कर्ष
संक्षेप में, प्रेमचंद की रचनाएँ भारतीय समाज का एक गहरा चित्रण प्रस्तुत करती हैं। उनके लेखन में इतिहास, परंपरा, और सामाजिक समस्याओं का एक अद्वितीय मिश्रण है, जो पाठकों को न केवल उनके समय की कठिनाइयों से परिचित कराता है, बल्कि उन समस्याओं की गंभीरता और उनकी जड़ों में जाकर समाधान की आवश्यकता का भी बोध कराता है। प्रेमचंद ने अपने पात्रों के माध्यम से न केवल समाज की दुरवस्था को उजागर किया, बल्कि उन्हें इस दिशा में सुधार के लिए प्रेरित भी किया।
उनका साहित्य न केवल एक यथार्थवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और समाज की जटिलताओं को भी उजागर करता है। उन्होंने जिस प्रकार से ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों, स्त्री के अधिकारों, और आर्थिक असमानताओं का चित्रण किया, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है। प्रेमचंद का यह साहित्य केवल साहित्यिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
आज भी प्रेमचंद की रचनाएँ हमें समाज के प्रति सजग और संवेदनशील बनाती हैं। वे हमें यह सिखाती हैं कि हमारी सामाजिक जिम्मेदारियाँ क्या हैं और हमें अपने आस-पास की दुनिया में किस प्रकार की सकारात्मकता लाने की आवश्यकता है। प्रेमचंद का दृष्टिकोण यह दर्शाता है कि साहित्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज के लिए एक दर्पण भी है, जिसमें उसकी अच्छाइयाँ और कमज़ोरियाँ दोनों दिखाई देती हैं।
उनकी रचनाएँ यह स्पष्ट करती हैं कि साहित्य सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त माध्यम है। उन्होंने अपने समय के मुद्दों को उजागर करते हुए, यह संदेश दिया कि समाज में सुधार संभव है यदि हम अपने भीतर की सोच को बदलें और एकजुट होकर कार्य करें। यही प्रेमचंद की महानता है—उनका लेखन न केवल उनके समय की समस्याओं का समाधान करता है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक प्रेरणा स्रोत है।
अतः प्रेमचंद का साहित्य हमारे समाज के लिए एक अमूल्य धरोहर है, जो न केवल अतीत के संघर्षों को दर्शाता है, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए भी एक सशक्त संदेश देता है। उनके विचार, उनके पात्र, और उनकी कहानियाँ हमें यह याद दिलाती हैं कि बदलाव संभव है, यदि हम एकजुट होकर इसे हासिल करने का प्रयास करें। उनके योगदान से प्रेरित होकर हम एक बेहतर और अधिक न्यायपूर्ण समाज की ओर बढ़ सकते हैं।
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Cite Article:
"प्रेमचंद की रचनाओं में भारतीय समाज का चित्रण", International Journal of Science & Engineering Development Research (www.ijrti.org), ISSN:2455-2631, Vol.9, Issue 11, page no.189-195, November-2024, Available :http://www.ijrti.org/papers/IJRTI2411020.pdf
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ISSN:
2456-3315 | IMPACT FACTOR: 8.14 Calculated By Google Scholar| ESTD YEAR: 2016
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