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महाकवि भारवि का जीवनवृत्त प्रायः अन्धकार में है। भारवि मे जीवन विषय में कालिदास शूद्रक आदि के तुल्य ही अनेक जनश्रुतियाँ प्रचलित है। उनमें सत्यांश कितना है, यह कहा नहंीं जा सकता।
एक किंवदन्ती उन्हें धारा नगरी का निवासी सिद्ध करती है। इनकी माता का नाम सुशीला और पिता का नाम श्रीधर बताया गया है साथ ही कहा गया है कि रसिकवती अथवा रसिका नाम की कन्या के साथ इनका विवाह हुआ था।
’’अवन्तिसुन्दरी कथा’’ के अनुसार इनके पिता का नाम नारायण स्वामी था। इनका वास्तविक नाम दामोदर था और ’’भारवि’’ उपाधि थी।
अवन्तिसुन्दरीकथा के आधार पर निर्मित पद्यात्मक ’अवन्तिसुन्दरी कथा’ के अनुसार भारवि का जन्म कुशिक गौत्र में हुआ था। चालुक्य वंश के राजा विष्णुवर्धन से उसकी मित्रता हो गई थी और ये उसी के सभा पण्डित थे।
एक लोककथा के अनुसार भारवि अपने पिता से रूष्ट होकर ससुराल चले गए थे। एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भारवि ने अर्थाभाव के कारण अपनी पत्नि को आधा श्लोक देकर अपने किसी धनी मित्र के पास उसके बदले धन लाने को कहा। उस समय वह श्रेष्ठी (सेठ) वहाँ नहीं था। किन्तु उसकी भार्या ने धन देकर उस श्लोक को लिखवा कर अपने कक्ष में टांग दिया। उसका पति पन्द्रह वर्षो के लिए विदेश गया हुआ था। जब वह वापस लोटा, तो उसने अपनी पत्नी को नवयुवक के साथ सोते देखा। इस पर वह अपनी पत्नी और उस युवक का वध करने को उद्यत हुआ। किन्तु उसी समय उस सेठ ने उस श्लोक के अंश को पढ़ा।
Keywords:
भारवि की सहायता से ही वे राजा विष्णुवर्धन की सभा में प्रविष्ट हुए। इससे इतना सुनिश्चित है कि भारवि दक्षिण भारत के रहने वाले थे।2 किरातार्जुनीयम् संस्कृत के सुप्रसिद्ध महाकाव्यों में से अन्यतम है। इसे महाकाव्यों की ’बृहत़्त्रयी’ में प्रथम स्थान प्राप्त है। महाकवि कालिदास की कृतियों के अनन्तर संस्कृत-साहित्य में भारवि के किरातर्जुनीय का ही स्थान है।
Cite Article:
"भारवि का अर्थगौरव में योगदान", International Journal of Science & Engineering Development Research (www.ijrti.org), ISSN:2455-2631, Vol.4, Issue 10, page no.60 - 62, October-2019, Available :http://www.ijrti.org/papers/IJRTI1910012.pdf
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ISSN:
2456-3315 | IMPACT FACTOR: 8.14 Calculated By Google Scholar| ESTD YEAR: 2016
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