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मानव जितनी तेजी से विकास कर रहा है उतनी ही तेजी से पर्यावरण को दूषित कर रहा है। पर्यावरण प्रदूषण आज विश्व के हर देश के लिए एक समस्या है। जैसे-जैसे लोगों ने औद्योगिक तरक्की की है वैसे-वैसे पर्यावरण का अवाछनीय दोहन हुआ है। पर्यावरण मंत्रालय की प्रदूषण नियंत्रण संबधि राष्ट्रीय नीति के अनुसार प्रदूषण को आगे न फैलाने के लिए औद्योगिक प्रतिष्ठानों को अनिवार्य रूप से पर्यावरण लेखा परीक्षण कराना होगा। साथ ही सरकार की प्रदूषण नियंत्रण करने वाली तकनीक को भी अपनाना होगा जिससे पर्यावरण को नुकसान न पहुचे। औद्योगिक संस्थानों को पर्यावरण लेखा के अनुरूप औद्योगिक इकाइयों में होने वाले कामकाज व उससे सम्बन्धित पर्यावरण के विभिन्न पहलू की जानकारी देनी होगी। इस नीति के तहत उपयोग में ला रहे कीटनाशकों केमिकल, और औद्योगिक अपशिष्ट की जानकारी देनी होगी। जो औद्योगिक अपशिष्ट जल में मिलकर जलाशयों को दूषित करते हैं उनको दुबारा रिसाइकिल करके उपयोग करना होगा। कारखानों से निकलने वाले धुँए के लिए औद्योगिक इकाई को फिल्टर लगाने होंगे जिससे हानिकारक तत्व वायु न में मिल सकें। सरकार की तरफ से औद्योगिक इकाईयों के लिए पर्यावरण संबन्धित कड़े नियम लागू किये गये हैं परन्तु बिडम्बना यह है कि सरकार जितना जोर कानून व नीति बनाने में लगाती है उतना उसके कार्यशील होने में नहीं। इसका नवीजा यह है कि पर्यावरण-संकट दिन प्रतिदिन गहराता जा रहा है आज के समय का उदाहरण ले तो दिल्ली में वायु प्रदूषण इतना ज्यादा है कि सर्दि में कोहरे के साथ मिलकर उसे और भयानक रूप दे देतेहै। नजबूरी यह भी है कि पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम के लिए हम अन्य देशों पर भी निर्भर हैं देश की सामाजिक वनीकरण प्रदूषण नियंत्रण आदि के लिए हमें विदेशी सहायता पर निर्भर रहना पड़ता है। यह विदेशी सहायता मुख्य रूप से विश्व बैंक से आती है तथा यह विदेशी सहायता परोक्ष रूप से अपना हित सावती रही है। पर्यावरण प्रदूरण के लिए समाज के ही लोगों को सामने आकर पहल करनी होगी। एशिया के विकास विशेषज्ञ और पर्यावरण सलाहकार प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए एक लोगो को जागृत करने के लिए मनोरंजक धारावाहिक का उपयोग कर रहे हैं आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोगों को और समाज को इस समस्या के बारे में सरल रूप से कैसे समझाया जाए। समाचार पत्र व रेडियो पत्रकारिता में सीमित सफलता के बाद अब यह उम्मीद की जा रही है कि टीवी के माध्यम से यह कार्य किया जा सके। मैक्सिको और ब्राजील जैसे देशों में ऐसे टीवी धारावाहिक काफी लोकप्रिय हुए है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के तहत नौ एशियाई देशों ने पर्यावरण संतुलित विकास के लिए पहल नामक कार्यक्रम के प्रभारी ऐनी फोलाई का कहना था कि टीवी माध्यम काफी असरकारक होते हैं। हर साल 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाने का कारण भी समाज को पर्यावरण के प्रति जागृत करना है। भारत में दूरदर्शन के माध्यम से जागरूकता का अभियान चलाना चाहिए जिससे सामाजिक दृष्टिकोण पर्यावरण के प्रति बदले इंटरनेट आदि के माध्यम से छोटी-छोटी पहल करनी होंगी जैसे जल ही जीवन है. पेड़ बचाओ पेड़ लगाओ आदि की सोच समाज में विकसित करनी होगी। इन्ही प्रयासों से पर्यावरण के संतुलित विकास के मुद्दों के बारे में व्यापकता एवं प्रभावी व्यापक रवैया जागृत होगा।
Keywords:
परिस्थितियाँ, प्रदूषण प्राकृतिकता, उच्छिष्ट, औद्योगिक ।
Cite Article:
"पर्यावरण , शिक्षा और राजस्थान के विकास का भौगोलिक अध्ययन", International Journal of Science & Engineering Development Research (www.ijrti.org), ISSN:2455-2631, Vol.7, Issue 3, page no.82 - 84, March-2022, Available :http://www.ijrti.org/papers/IJRTI2203015.pdf
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ISSN:
2456-3315 | IMPACT FACTOR: 8.14 Calculated By Google Scholar| ESTD YEAR: 2016
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