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आदिवासी समाज को पिछड़ा समाज माना जाता है क्योंकि आदिवासी समाज की आर्थिक स्थिति विकसित एवं विकासशील समाज की तरह भौतिकवादी नहीं है यह समाज अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति प्रकृति द्वारा प्रदत साधनों से करता है तथा भौतिकवादी समाज की तरह भौतिक वस्तु को प्राप्त करने की होड़ नहीं रखता है ।आदिवासी समाज में महिला पुरुष या लैंगिकता के आधार पर किसी भी प्रकार का बंटवारा नहीं देखा जाता है। यहां आर्थिक कार्यों में महिला एवं पुरुष की समान भागीदारी देखी जाती है। घर एवं परिवार की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना जितना पुरुष का दायित्व है उतना ही महिला का भी है। आदिवासी समाज की अर्थव्यवस्था पर दृष्टि डाली जाए तो इनका तकनीकी ज्ञान और स्तर बहुत निम्न होता है। वैज्ञानिक ना होकर अनुभाविक होता है। यह लोग भविष्य के लिए बचा कर रखने या संग्रह करने की प्रवृत्ति से मुक्त हैं। आर्थिक क्रियाएं एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र तक ही सीमित रहती हैं। मुनाफाखोरी या लाभ की प्रवृत्ति नहीं पाई जाती है। यहां श्रम विभाजन विशेषीकरण या कुशलता तथा अकुशलता के आधार पर नहीं पाया जाता है।
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Cite Article:
"आर्थिक संदर्भ में आदिवासी महिलाओं के दायित्व ", International Journal of Science & Engineering Development Research (www.ijrti.org), ISSN:2455-2631, Vol.7, Issue 5, page no.682 - 686, May-2022, Available :http://www.ijrti.org/papers/IJRTI2205115.pdf
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ISSN:
2456-3315 | IMPACT FACTOR: 8.14 Calculated By Google Scholar| ESTD YEAR: 2016
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